ख़ुश मिज़ाजी, चटोरी ज़ुबान और लखनऊ की वकालत, भीड़ में लखनवियों को कुछ ऐसे पहचान सकते हैं आप!
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यादों में समा चुके सिंगल स्क्रीन थिएटर्स की ये फ़ोटोज़ कहती हैं, 'पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त' देश की राजधानी दिल्ली से ले कर छोटे-बड़े कस्बों के हर दूसरे मोड़ पर आज शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स देखने को मिल जाते हैं. इन शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स के ज़माने में सिंगल स्क्रीन थिएटर तो जैसे गायब से हो गए हैं, पर एक दौर था जब हर बड़े स्टार की फ़िल्म से लेकर बड़े-बड़े नाटक सिंगल स्क्रीन थिएटर पर ही खेले जाते थे. दिल्ली में भी मंदी की वजह से ऐतिहासिक 'रीगल' सिनेमा बंद हो गया, जिसके साथ ही देश की राजधानी से सिंगल थिएटर स्क्रीन का सुनहरा अध्याय भी इतिहास के पन्नों में समा गया. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
फ़िल्मों में महिलाओं के पात्रों की प्रासंगिकता पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. कमर्शियल सिनेमा और आर्ट सिनेमा में तमाम तरह का विरोधाभास देखने को मिला है. बॉलीवुड में बीच-बीच में महिला प्रधान फ़िल्में देखने को मिलती रही हैं लेकिन कमर्शियल सिनेमा ने कहीं न कहीं अदाकाराओं को नाचने-गाने या शोपीस तक ही सीमित कर दिया है. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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