निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहां, चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
Newsletter #SochAajKi OPINION मैं शर्मिंदा हूं कि अगर हमने पहले आवाज़ उठाई होती, तो उन लड़कियों पर डंडे न पड़ते : पूर्व BHU छात्रा मधुर मनोहर अतीव सुंदर, ये सर्वविद्या की राजधानी, यह तीनों लोकों से न्यारी काशी. सुज्ञान धर्म और सत्याराशि. बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी.... ये है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुल गीत. इस विश्वविद्यालय से पढ़ा हर विद्यार्थी इस गीत से भली-भांति परिचित होगा. आज भी याद है ये कुलगीत... इसे सब साथ मिलकर गाते थे और गीत ख़त्म होने पर कोई ताली नहीं बजाता था. ठीक वैसे ही जैसे राष्ट्रीय गीत या राष्ट्रीय गान के बाद हम ताली नहीं बजाते. Read More MORE STORIES प्यारे Prince Harry! इन फ़ोटोज़ में दुनिया के सामने ...