बैंक मैनेजर इनकी ईमानदारी से काफ़ी प्रभावित हैं
#ArzKiyaHai | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
![]() | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
NEWS | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||
TRENDING STORIES | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
ATM से 3500 निकालने गए थे जितेश, मगर निकल आए 70000, उन्होंने इसकी जानकारी बैंक को दी राजस्थान के टोंक के रहवासी जितेश दिवाकर के साथ एक अजीब वाकया हुआ. वो अपने घर के पास के एटीएम से पैसे निकलाने गए थे, मगर उम्मीद से ज़्यादा पैसे निकल आए. वे इस घटना से थोड़े परेशान भी हो रहे हैं. नोटबंदी के बाद इस तरह की ख़बरें देश के अन्य हिस्सों से देखने और पढ़ने को मिल रही थीं. आइए, पूरे मामले को विस्तार से जानते हैं. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
जिन बच्चों के कंधों पर हिन्दुस्तान का भविष्य टिका है, उनके अधिकारों पर हम चुप क्यों हैं? साल था 1989. तारीख थी 20 नवंबर. समस्त विश्व के बच्चों के कल्याण के दृष्टिकोण से एक खास दिन. इस दिन एक ऐसा अध्याय लिखा जाना था, जिससे विश्व के सभी बच्चों की ज़िंदगी बदलने वाली थी. सभी बच्चे सुरक्षित होने वाले थे, उन्हें अधिकार मिलने वाले थे. ऐसा हुआ भी. 20 नवंबर 1989 को विश्व के सबसे बड़े संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'बाल अधिकार समझौते' को पारित कर विश्व इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया, जिसमें बच्चों की तकदीर लिखी गई. मगर अफ़सोस वह तकदीर कागज़ से कभी बाहर नहीं निकल पाई. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
Follow Us On: | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
|
Comments
Post a Comment