अश्वत्थामा के अस्त्रों का सभी लोहा मानते थे, लेकिन आज भी भटक रहा है वो योद्धा
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दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लेंगे, तब भी आप इस पेंटिंग में दूसरा बाघ नहीं ढूंढ़ पाएंगे बचपन में खेली गई पहेलियां आज पहेलियां बन कर कहीं गुम हो गई हैं, उन पहेलियों को बूझना आज बेशक बचकानापन लगता है. लेकिन कुछ पल के लिए ही सही पर ये पहेलियां ही हैं, जो एक बार फिर बचपन की उन्हीं गलियों में ले जाती हैं, जो रात को लाइट जाने पर हम दोस्तों के साथ छत पर बूझा करते थे. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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